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क्या Genz office culture में सबसे ज्यादा stressed generation है?

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- ईशु शर्मा 

 

आज के युवाओं को जेन ज़ी (Gen Z) के नाम से जाना जाता है और इंटरनेट पर ये शब्द काफी प्रचलित भी है। दरअसल जनरेशन ज़ी (Generation Z) 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवाओं को कहा जाता है और आज यह युवा बड़ी संख्या में जॉब मार्केट (job market) में कदम बढ़ा रहे हैं। 

 

एक अध्ययन के मुताबिक यह पता चला है कि जनरेशन ज़ी (generation Z) ऐसी जनरेशन है, जो जॉब में सबसे ज़्यादा तनाव महसूस करती है। हालांकि कार्यबल के कारण हर जनरेशन तनाव और दबाव महसूस करती है, पर अध्ययन के मुताबिक जनरेशन ज़ी में स्ट्रेस (stress) के कारण मेंटल हेल्थ (mental health) जैसी समस्या बढ़ती नज़र आई हैं। 

 

क्या है स्ट्रेस बढ़ने का कारण? 

 

- इन बढ़ते कारणों को देखा जाए तो आज के ज़माने में युवाओं को खुद से ही बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं हैं, जिनकी वजह से युवाओं को उन अपक्षाओं पर खड़े न उतरने का डर होता है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (American Psychological Association) के सर्वे द्वारा ये ज्ञात हुआ कि जनरेशन ज़ी स्ट्रेस को प्रोडक्टिव (productive) काम के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत मानती है। 

 

- स्ट्रेस का दूसरा कारण कॉम्पिटिटिव जॉब मार्केट (competitive job market) और अनिश्चित आर्थिक माहौल भी है। आज के ज़माने में कोई भी कंपनी जॉब की ग्यारंटी नहीं देती है और बड़ी से बड़ी कंपनी भी भारी मात्रा में एमप्लॉइस (employees) को निकाल देती है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की एक रिपोर्ट के द्वारा ये पाया गया कि यूरोप और अमेरिका जैसों देशों में 40% युवा कम सैलरी और असुरक्षित नौकरियां कर रहे हैं, जिसकी वजह से युवाओं में तनाव और एंग्जायटी (anxiety) की समस्या बढ़ रही है। 

 

- साथ ही कोरोना महामारी ने भी जनरेशन ज़ी के करियर पर काफी असर डाला है। कोरोना महामारी के बाद जॉब मार्केट काफी अव्यवस्थित हो गया है, जिसकी वजह से युवाओं को अच्छी नौकरी ढूंढ़ने में काफी समस्या आती है। डेलोइट (Deloitte) के एक सर्वेक्षण द्वारा 63% युवाओं का कहना है कि पिछली जनरेशन की तुलना में कोरोना ने उनके करियर ग्रोथ पर काफी नकारात्मक प्रभाव डाला है। 

 

- नेशनल सोसाइटी ऑफ हाई स्कूल स्कॉलर्स (National Society of High School Scholars) के सर्वे में पाया गया कि 75% युवा ऐसी नौकरी को प्राथमिकता देना चाहते हैं, जिससे उनकी वर्क लाइफ बैलेंस (work life balance) रहे। साथ ही आज के युवा खुद की मेंटल हेल्थ और सेल्फ केयर (self care) को ज़्यादा प्राथमिकता देना पसंद करते हैं।

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